अब चर्चा करते हैं उन नौ प्रमुख नियमों पर जो चिकित्सा के अधिकारों के दावों के लिए प्रासंगिक मानव अधिकार मानकों और कानून के विकास और उनके इस्तेमाल के बारे में मार्गदर्शन करते हैं|
1- मानव अधिकार सार्वभौमिक, अपरिहार्य, अविभाज्य, परस्पर आश्रित और परस्पर संबंधित हैं| वे सार्वभौमिक हैं, क्योंकि हर इंसान समान अधिकारों के साथ पैदा होता है और समान अधिकार रखता  है|
2- मानव अधिकारों के अंतर्गत गैर-भेदभाव को लागू करने के लिए एक निहित मार्गदर्शक सिद्धांत और राज्यों पर किसी भेदभाव के बिना काम करने और सभी व्यक्तियों को समानता तक ले जाने के लिए सकारात्मक रूप से कदम उठाने का एक ख़ास दायित्व है|
3- गैर-भेदभाव के सिद्धांत का चिकित्सा, यौन स्वास्थ्य और मानव अधिकारों से गहरा संबंध है| व्यक्तियों और समूहों के बीच असमानता, खराब यौन स्वास्थ्य सहित और खराब स्वास्थ्य के बोझ का एक बड़ा कारण है|
4- स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में शामिल कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और पद्धतियां भी भेदभाव और स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय असर डालने वाले अन्य मानव अधिकार उल्लंघनों के स्रोत हो सकते हैं|
5- भेदभाव से निपटने का राज्य का दायित्व, राष्ट्रीय क़ानूनी के दायरे से आगे जाता है और इसमें भेदभाव को समाप्त करने और समानता की स्थिति लाने के लिए सार्थक कार्यवाही करने की बाध्यता भी शामिल होती है|
6- मानव अधिकार के मानकों से यह साफ़ है कि राज्यों के तीन तरह के दायित्व होते हैं –  चिकित्सा के अधिकारों का सम्मान करना, उनका संरक्षण करना और उनकी पूर्ति करना| यौन स्वास्थ्य के संदर्भ में अधिकारों का सम्मान करने का एक उदाहरण, कानूनों और ऐसे अन्य उपाय अपनाना हो सकता है, ताकि वह सुनिश्चित हो सके कि राज्य के प्रतिनिधि के रूप में पुलिस ऐसे इंसानों को परेशान या उनका शोषण न करें जो जेंडर के अनुकूल कपड़े न पहने या व्यवहार न करें|
7- यथोचित उपाय की अवधारणा के अंतर्गत राज्य के दायित्व बताये गये हैं कि – वह अधिकारों का सम्मान, रक्षा और पूर्ति करें| साथ ही राज्य, अधिकार पाने वाले लोगों के कर्तव्यों के लिए समीक्षा के मानक की भूमिका भी निभाता  है, ताकि आमतौर पर अधिकार सुनिश्चित हो सकें|
8- वहीं, अधिकारों की निरंतर पूर्ति के नियम में कहा गया है कि चिकित्सा और यौन स्वास्थ्य से संबंधित अधिकारों सहित, उन अधिकारों को पूरी तरह प्रदान करने की दिशा में अपने उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए राज्य के मानव अधिकार दायित्वों को पूरा करने की दिशा में यथासंभव स्पष्ट ईमानदार, ठोस और लक्षित कदम उठाए जाए|
9- अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार, 18 साल से कम आयु के लोग सभी मानव अधिकारों के हकदार हैं, लेकिन जब वे 18 वर्ष के हो जाते हैं तो युवाओं के प्रति राज्यों के विशेष क़ानूनी दायित्व बदल जाते हैं|