Fundraising For Food and Hunger.

 इस भुखमरी एवं कुपोषण की भारत में तादाद 19.6 करोड़ है. जो दुनिया की तुलना में करीब एक चौथाई है. 

                Food and Hunger , My 30 Rights through , EYSH Welfare Society T.P Nagar , Prayagraj and Today Foundation Prayagraj , Humanity Assist Unity Campaigning Program   has created a sustainable way to reduce food waste and fight hunger. We have mobilized the leaders of moving, relocation, and multi-family industries to provide their customers, clients, and residents with the opportunity to donate their food when they move in this Lock down Period. Members of Move For Hunger also organize community food drives, participate in awareness campaigns, and 
 create employee engagement programs in this Covid-19 Lock Down Period.  


            दुनिया इस कोरोना महामारी के दौरान , संपूर्ण भारत में लोक डाउन की स्थिती बनी है जिससे भारत में 19 करोड़ कुपोषित लोग प्रभावी हैं।भारतीय आबादी के सापेक्ष भूख की मौजूदगी करीब साढ़े 14 फीसदी की है. भारत में पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को विवश है जिसका असर मानसिक और शारीरिक विकास, पढ़ाई-लिखाई और बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है. रिपोर्ट की भाषा में ऐसे बच्चों को ‘स्टन्टेड' कहा गया है. पड़ोसी देश, श्रीलंका और चीन का रिकॉर्ड इस मामले में भारत से बेहतर हैं जहां क्रमशः करीब 15 प्रतिशत और 9 प्रतिशत बच्चे कुपोषण और अवरुद्ध विकास के पीड़ित है।

            संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में भुखमरी के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है.  एशिया के मामले में  भारत  सबसे बुरी हालत में है। देश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भूखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है। जो आंकड़े पाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज्यादा हैं। स्थिति को "चिंताजनक" बताया है। 

              देेश में हुई कॉन्फ्रेंस में सरकार से जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया गया। एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में भुखमरी सबसे बड़ी समस्या है, वैसा पूरे एशिया मेंं कहीं देखने को नहीं मिला है. रिपोर्ट में लिखा गया है, "भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक भूूूखमरी का बहुत बड़ा बोझ है." वहीं  सरकार भूूूखमरी को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, पर साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि दलित और आदिवासी इलाकों में अभी भी सफलता नहीं मिल पाई है। रिपोर्ट में बच्चों को खाना ना मिलने के साथ साथ, देश में खाने की बर्बादी का ब्योरा भी दिया गया है।

      आज के इस कोरोना महामारी के चलते काफी हद तक गरीब बेसहारा एवं बेबस लोंगों तक , सरकार द्वारा , जनता के सहयोग द्वारा एवं संस्थाओं द्वारा भोजन की व्यस्था की जा रही है। फिर भी प्रश्न वहीं पर बना हुआ है कि क्या इस वितरण में बांटें जाने वाली सामग्री किसी बालक के कुपोषण में या किसी गर्भवती महिला के लिए पर्याप्त है। 
        भारत में  भूख एवं कुपोषण से निपटने के लिए योजनाएं बनी हैं । लेकिन उन पर सदाशयता और शिद्दत से अमल होता नहीं दिखता । महंगाई और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल ने गरीबों और निम्न आय के लोगों को असहाय बना दिया है । सार्वजनिक वितरण प्रणाली हांफ रही है।
             उधर किसान बिरादरी कर्ज और खराब मौसम की दोहरी मार में पिस रही है. बीज और खाद की उपलब्धता का रास्ता निजी कंपनियों से होकर जा रहा है, पानी सूख रहा है, खेत सिकुड़ रहे हैं, निवेश के जोन पनप रहे हैं, तेल और ईंधन की कीमतें उछाल पर हैं और लोग जैसे-तैसे बसर कर रहे हैं. इस दुर्दशा में उस अशांति, हिंसा और भय को भी जोड़ लीजिए जो कभी धर्म-जाति के नाम पर कभी खाने-पीने या पहनने-ओढ़ने के नाम पर बेतहाशा हो रही है.


        कहा जा सकता है कि खराब तस्वीर बता रहे हैं. हाल इतना भी बुरा नहीं तो फिर ये आंकड़े गलत हैं? या वो दृश्य फर्जी हैं जो वहां से फूट रहे हैं जहां असली भारत बसता है? क्या किया जाना चाहिए से पहले इस चिंता को अपनी आगामी सक्रियता का आधार बनाना चाहिए कि हालत नहीं सुधरे तो सारी भव्यताएं, सारा ऐश्वर्य, सारी फूलमालाएं सूखते देर नहीं लगेगी और भूख और अन्य दुर्दशाएं हमें एक कबीलाई हिंसा में धकेल देंगी.
 - दीपक सिंह  ,
फाइंडर My30Rights
 एडवोकेट हाईकोर्ट प्रयागराज।
मो० 7318303730