श्वास तंत्र अस्थमा एवं साँस से संबंधित भारत जितने भी लोग हैं वे सब असहाय हैं। ये सत्य बात है । इस लोक डाउन में अगर किसी गरीब व्यक्ति इस बिमारी से पीड़ित है और भारत में लॉक डाउन हो जाये। और सरकार से उसके बैंक खाते 500 रु भी आ जाये। कोई व्यक्ति आंटा चावल भी उसको प्रदान कर दे। फिर भी वो असहाय है। क्योंकि बिना दवा वो दस कदम नहीं चल सकता । और दवा 500 से ऊपर की हर महीने की हो जाती है।

  किसी व्यक्ति को ये रोग हो तो पता है कैसे ग्राशित होता है - केवल सरल 10 कदम चलने के लिए एक साधारण व्यक्ति मानों 50 किलो वजन लेके चलता हो। अगर एक मंजिला सीढ़ी पर जाना हो तो एक साधारण व्यक्ति जितना 10 मंज़िल ऊपर चढ़ता हो। कोई दोनो हाँथ से किसी का मुँह नाक बन्द कर दबाया हुआ हो और एक हल्की छोर से सुसक-सुसक के शांस ले रहा हो - ऐसे बितातें हैं। एक अस्थमा के मरीज ऐसे होतें हैं।


भारत में किसी को फ़िक्र नहीं है - इन असहाय लोंगों को न तो आज तक कोई सरकार एवं संस्था इनके लिए कुछ कर पाई और न ही इस संबंध में कोई पहल किया। हर पीड़ित व्यक्ति को चाहे किसी भी वर्ग का हो हर हालात में बीना दवा के चल भी नहीं सकता , कम से कम हर माह 1000 रु की दवा की उसको जरूरत होती है। इन पीड़ितों का फेफड़े 40% ही कार्यरत होता है और 60% काम नहीं कर पता। फिर भी ये किसी सरकारी विशेषता में नहीं आते।

दिव्यांगता में संरक्षण - अन्य विदेशों में इन पीड़ितों को विक्लांगता के श्रेणी में रखा गया है परन्तु आज भी भारत में ये इस श्रेणी से परें हैं।

हम सब हैं इसके जिम्मेदार -
जाने अनजाने में हम सब इस रोग को बढ़ाने में जिम्मेदार हैं। हमको कोई फर्क नहीं पड़ता पर , दिन भर अपनी बाइक और गाड़ी से इमकों फ़र्क पड़ता है। उद्धोगीकरण के निकले जहर से हमको कोई फर्क नहीं होता इनको होता है। हर हालात में हम सब जिम्मेदार हैं। हमने अब तक कितना धुवाँ किसी ना किसी माध्यम से छोड़ा होगा , क्या पता इन पर कितना प्रभावी हुआ होगा।

इन पीड़ितों की प्रति अत्यन्त आवश्यक कदम होनी चाहिए -

1.जिस प्रकार किसी फ़ायर आर्म्स लेने पर रेड क्रॉस में रसीद कटनी होती है उसी तरह हर गाड़ी के रोड टैक्स के साथ कुछ अंश इन पीड़ितों के कार्य उपयोगी के लिए हो।

2.इन पीड़ितों को दिव्यांग श्रेणी में रखा जाए और उसी प्रकार हर सुविधा दिया जाये।

3.प्रत्येक मंडल में लंग्स एंड रेस्पिरेटरी केंद्र या हॉस्पिटल हो जहां उनका मुफ़्त इलाज हो और दवा दी जाये।
    - दीपक सिंह